अरुंधति रॉय पर 13 साल पुराने मामले में केस क्यों चला रहे हैं, वामपंथी यह सवाल उठा रहे हैं। लेकिन एमजे अकबर पर 20 साल पुराना metoo केस में आरोप लग सकता था।
कल दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने अरुंधति रॉय और कश्मीर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ UAPA में मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी। इस मामले में FIR सुशील पंडित ने कराई थी। दो नामजद तहरीक-ए-हुर्रियत के अध्यक्ष सैय्यद अली शाह गिलानी और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर सैय्यद अब्दुल रहमान गिलानी मर चुके हैं। एक और आरोपी था माओवादी वारा वारा राव जो भीमा कोरेगांव मामले में भी शामिल है। सईद अली शाह गिलानी वही था जो नारा लगाता था, “मेरी जान मेरी जान, पाकिस्तान पाकिस्तान”। यह अरुंधति उसके साथ थी।
इन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने Committee for Release of Political Prisoners (CRPP)’ द्वारा आयोजित सभा, ‘Azadi : The Only Way’ पर बोलते हुए October 21, 2010 को एलटीजी ऑडिटोरियम, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली में उकसाने वाले और देश को तोड़ने हेतु भाषण दिए। सम्मेलन भी कश्मीर को भारत से अलग करने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। गिलानी और अरुंधति पर आरोप है कि उन्होंने इस बात का जोर शोर से प्रचार किया कि,
“कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और सशस्त्र बलों ने जबरन कब्ज़ा किया हुआ है, जम्मू कश्मीर की आज़ादी के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए”।
इस केस की जांच चल रही थी जिसके पूरा होने पर उप राज्यपाल ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है। अरुंधति रॉय अभी 62 वर्ष की है और मुकदमा चलते चलते 10 साल लग जाएंगे। नए कानून जो लागू होंगे 1 जुलाई से, उनकी वजह से मुकदमा जल्दी भी निपट सकता है मगर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में तो कोई समय सीमा नहीं है अपील जल्दी निपटाने के लिए। इसका मतलब ये मुकदमा ख़त्म होने तक अरुंधति 75 वर्ष की हो जायेगी और अगर सजा मिली तो लालू के तरह अस्पताल में रह कर कुछ दिन में बाहर आ जाएगी।
कल LG का आदेश आते ही वामपंथी न्यूज पोर्टल और कुछ अख़बार भी विधवा विलाप करने लगे कि सरकार 13 साल पुराने केस को क्यों शुरू कर रही है। वे लोग बताएं कि एमजे अकबर के खिलाफ एक महिला 20 साल पुराना metoo का केस शुरू कर सकती है तो अरुंधति का मामला तो 13 साल पुराना है, वो जांच के बाद क्यों शुरू नहीं हो सकता।
कांग्रेस तो नरेंद्र मोदी को गोधरा मामले में 15 साल तक उलझा कर सकती है और सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी उठाते रहती है लेकिन अरुंधति का केस शुरू नहीं होना चाहिए। अरुंधति रॉय से अगर आप आज भी पूछेंगे तो उनके विचार आज भी वैसे ही होंगे जैसे 2010 में थे और हो सकता है, उससे भी खतरनाक हों। ऐसे लोगों को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाते हैं जिन्हें देख कर जज साहब थोड़ा दबाव में आ जाएं।
"राष्ट्रहित सर्वोपरि" 💪💪
जय श्री राम 🙏
हर हर महादेव 🔱🙏🚩
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